Friday, 14 August 2015

क्या आप अब भी कहोगे की आजादी गांधी ने दिलवाई?


शायद इतिहास में यही पढ़ाया जाता है कि
गाँधीजी. . .आइये आज जानते है
उनकी कुछ महानताए
@ महानता 1. . . . . .शहीद-ए-आजम भगतसिंह
को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान
पुजारी गांधी ने कहा था. . .‘हमें ब्रिटेन के
विनाश के बदले अपनी आजादी
नहीं चाहिए।’’ और आगे कहा. . .‘‘भगतसिंह
की पूजा से देश को बहुत हानि हुई और हो
रही है वहीं (फांसी) इसका
परिणाम गुंडागर्दी का पतन है। ऐसे बदमाशो को
फांसी शीघ्र दे दी जाए ताकि 30
मार्च से करांची में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में कोई
बाधा न आवे" ।
अर्थात् गांधी की परिभाषा में
किसी को फांसी देना हिंसा नहीं
थी ।
@ महानता 2 . . . . . . इसी प्रकार एक ओर
महान्क्रा न्तिकारी जतिनदास को जब आगरा में अंग्रेजों ने
शहीद किया तो गांधी आगरा में
ही थे और जब गांधी को उनके पार्थिक
शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ
इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए
कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में
किसी प्रकार की दया और सहानुभूति
नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे
अहिंसावादी गांधी।
@ महानता 3 . . . . . जब सन् 1937 में कांग्रेस अध्यक्ष के
लिए नेताजी सुभाष और गांधी द्वारा
मनोनीत सीतारमैया के मध्य मुकाबला हुआ
तो गांधी ने कहा. . .यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे
राजनीति छोड़ देंगेलेकिन उन्होंने अपने मरने तक
राजनीति नहीं छोड़ी जबकि
रमैया चुनाव हार गए थे।
@ महानता 4 . . . . . .इसी प्रकार गांधी
ने कहा था. . . . .“पाकिस्तान उनकी लाश पर बनेगा”
लेकिन पाकिस्तानउनके समर्थन से ही बना । ऐसे थे
हमारे सत्यवादी गांधी ।
@ महानता 5 . . . . . . इससे भी बढ़कर
गांधी और कांग्रेस ने दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजों का
समर्थन किया तो फिर क्या लड़ाई में हिंसा थी या लड्डू
बंट रहे थे ? पाठक स्वयं बतलाएं ?
@ महानता 6 . . . . . .गांधी ने अपने
जीवन में तीन आन्दोलन (सत्याग्रह)
चलाए और तीनों को ही बीच में
वापिस ले लिया गया फिर भी लोग कहते हैं कि
आजादी गांधी ने दिलवाई।
@ महानता 7 . . . . .इससे भी बढ़कर जब देश के
महान सपूत उधमसिंह ने इंग्लैण्ड में माईकल डायर को मारा तो
गांधी ने उन्हें पागल कहा इसलिए नीरद
चौधरी ने गांधी को दुनियां का सबसे बड़ा
सफल पाखण्डी लिखा है।
@ महानता 8 . . . . . इस आजादी के बारे में
इतिहासकार CR मजूमदार लिखते हैं “भारत की
आजादी का सेहरा गांधी के सिर बांधना
सच्चाई से मजाक होगा।
यह कहना कि सत्याग्रह व चरखे से आजादी दिलाई
बहुत बड़ी मूर्खता होगी।
इसलिए गांधी को आजादी का
‘हीरो’ कहना उन क्रान्तिकारियों का अपमान है
जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना
खून बहाया। ”यदि चरखों की आजादी
की रक्षा सम्भव होती है तो बार्डर पर
टैंकों की जगह चरखे क्यों नहीं रखवा दिए
जाते. . . . . .?
अगर आप सहमत है तो इसकी सच्चाई "Share"
कर देश के सामने पाखण्डी को उजागर करें।. . . . .
.जय हिन्द. . . . .जय भारत
शहीदे आज़म भगत सिंह को फांसी कि
सजा सुनाई जा चुकी थी, इसके कारण
हुतात्मा चंद्रशेखर आज़ाद काफी परेशान और चिंतित हो
गए।
भगत सिंह की फांसी को रोकने के लिए
आज़ाद ने ब्रिटिश सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए
आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन
गांधी ने कहा कि वो किसी
भीउग्रवादी से नहीं मिल
सकते।
गांधी जानते थे कि अगर भगतसिंह और आज़ाद जैसे
क्रन्तिकारी और ज्यादा दिन जीवित रह गए
तो वो युवाओं के हीरो बन जायेंगे। ऐसी
स्थिति में गांधी को पूछनेवाला कोई ना रहता।
हमने आपको कई बार बताया है कि किस तरह गांधी ने
भगत सिंह को मरवाने के लिए एक दिन पहले फांसी
दिलवाई। खैर हम फिर से आज़ाद कि व्याख्या पर आते है।
गांधी से वक्त ना मिल पाने का बाद आज़ाद ने नेहरू से
मिलने का फैसला लिया , 27 फरवरी 1931 के दिन
आज़ाद ने नेहरू से मुलाकात की।
ठीक इसी दिन आज़ाद ने नेहरू के सामने
भगत सिंह की फांसी को रोकने
की विनती की।
बैठक में आज़ाद ने पूरी तैयारी के साथ भगत
सिंह को बचाने का सफल प्लान रख दिया।
जिसे देखकर नेहरू हक्का -बक्का रह गया क्यूंकि इस प्लान के
तहत भगत सिंह को आसानी से बचाया जा सकता था।
नेहरू ने आज़ाद को मदद देने से साफ़ मना कर दिया इस पर आज़ाद
नाराज हो गए और नेहरू से जोरदार बहस हो गई फिर आज़ाद
नाराज होकर अपनी साइकिल पर सवार होकर अल्फ्रेड
पार्क की होकर निकल गए।
पार्क में कुछ देर बैठने के बाद ही आज़ाद को पोलिस ने
चारो तरफ से घेर लिया। पोलिस पूरी तैयारी के
साथ आई थी जेसे उसे मालूम हो कि आज़ाद पार्क में
ही मौजूद है।
@ आखरी साँस और आखरी
गोली तक वो जाबांज अंग्रेजो के हाथ नहीं
लगा ,आज़ाद की पिस्तौल में जब तक गोलियाँ बाकि
थी तब तक कोई अंग्रेज उनके करीब
नहीं आ सका।
आखिरकार आज़ाद जीवन भरा आज़ाद ही
रहा और उस ने आज़ादी में ही
वीरगति को प्राप्त किया।
अब अक्ल का अँधा भी समझ सकता है कि नेहरु के
घर से बहस करके कर पार्क में 15 मिनट अंदर
भारी पोलिस बल आज़ाद को पकड़ने के लिए बिना नेहरू
की गद्दारी के नहीं पहुँचा जा
सकता था।
नेहरू ने पोलिस को खबर दी कि आज़ाद इस वक्त पार्क
में है और कुछ देर वहीं रुकने वाला है। साथ
ही कहा कि आज़ाद को जिन्दा पकड़ने की
भूल ना करें नहीं तो भगतसिंह
की तरफ मामला बढ़ सकता है।
लेकिन फिर भी कांग्रेस कि सरकार ने नेहरू को किताबो में
बच्चो का क्रन्तिकारी चाचा नेहरू बना दिया और आज
भी किताबो में आज़ाद को "उग्रवादी" लिखा
जाता है।
लेकिन आज सच को सामने लाकर उस जाँबाज को आखरी
सलाम देना चाहते हो तो इस पोस्ट को शेयर करके सच्चाई को
सभी के सामने लाने में मदद करें।

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